Monday, December 28, 2015
Wednesday, December 23, 2015
ठण्ड
पहाड़ों पर बढ़ने लगी है बर्फ की सफ़ेद चादर, अब मैदान भी इस कदर ठिठुरने लगे हैं,
बंद होने लगे दरवाजे घरों के, न है जिनके पास छत बेहाल वो भी सिकुडंने से लगे हैं,
तनों पर परतें चढ़ने लग गयी हैं, न है जिनके पास फटेहाल वो गुदड़ी में सिमटने लगे हैं,
गली -मोहल्लों में सन्नाटे पसरने लगे गए हैं, सड़को पर अलाव भी अब जलने लगे है,
दरख़्त और पत्ते भी सिकुड़ रहे हैं, परिंदे भी छिपने के लिए जगह ढूंढने लगे हैं,
सूरज की तपिश भी अब मंद पड़ने लगी है, रात कोहरे की चादर में खोने सी लगी है,
सर्द हवाओं के थपेड़े न जाने अब कितनों को आगोश में लेगी,
ठण्ड एक बार फिर कहर ढाने को बेसब्र हो रही है ॥
Monday, November 16, 2015
विश्व शौचालय दिवस 19 november 2015
मनुष्य जीवन की सबसे जरूरी अव्सय्कता है शौचालय। आज भी दूरस्थ गांव में खुले में शौच करने लाखो ग्राम वासी जाते हैं, इसका कारण है शौचालय न होना साथ ही शौचालय की महत्ता का मालूम न होना। जिसके कारण सबसे अधिक परेशानी महिलाओं और लड़कियों को होती है. जिसमें सबसे अधिक यौन हिंसा का होना शामिल है।
१९ नवम्बर को विश्व शौचालय दिवस का मनाया जाना महज एक औपचारिकता ही नहीं है अपितु जागरूकता फैलाना भी है.
स्वछता के बारे में जागरूक करना है, यूँ तो अब शहरों में जगह- जगह सुलभ शौचालयों की व्यवस्था भी है परन्तु गावों में जहाँ भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है वहां इसकी व्यवस्था करवाना साथ इसके बारे में सही और सटीक जानकारी भी फैलाना है, खुले में शौच से होने वाले नुक्सान के बारे में बताना है।
लाखों बच्चे कुपोषण का तो शिकार हो ही रहे हैं साथ ही अन्य बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाते हैं, न केवल बच्चे अपितु बुजुर्ग भी इससे होने वाली बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
जब समस्त सुविधाएं नहीं होती थीं तब खुले में बने शौचालयों के कारण हैजा, कालरा भी फ़ैल जाता था जो की महामारी का रूप ले लेता था।
तो आवश्य्कता है की आज हर घर में हर गांव में शौचालय की व्यवस्था बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। सड़को पर मल - मूत्र त्यागने वालों के लिए भी ठोस नियम बनाने की अव्सय्कता है, न केवल नियम बांये जाएं अपितु उन पर कठोरता से अमल लाने की जरूरत है।
अब हमको साथ मिलकर इस दिशा में जागरूकता फैलानी होगी और स्तिथि को बेहतर बंनाने की दिशा में हर मुमकिन कदम बढ़ाने होंगे। बस अब और नहीं देश, समाज, परिवार के स्वास्थ्य और स्वक्षता के लिए इंतज़ार नहीं कार्य करने होंगे।
बच्चों को सीखना होगा शौच के बाद हाथ अवश्य धोएं, बुजुर्गों और विकलांगों के लिए कमोड सिस्टम वाले शौचालयों की व्यवस्था की जाए। शौचालय से निकलने वाले पानी के निकास की उचित व्यवस्था हो, ताकि जो पानी पीने के लिए घरों तक पहुँचता है वो प्रदूषित न हो. साफ सफाई की बुनियादी जरूरतों के विकास में ठोस कदम उठाये जाने चाहिए।
http://thehapeecommode.com/
अधिक जानकारी जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें, जहाँ जगह- जगह होने वाली वर्कशॉप और इसके विषय में जानकारी देने के लिए कार्यक्रम की सूची है। http://www.worldtoiletday.info
http://www.worldtoiletday.info/
१९ नवम्बर को विश्व शौचालय दिवस का मनाया जाना महज एक औपचारिकता ही नहीं है अपितु जागरूकता फैलाना भी है.
स्वछता के बारे में जागरूक करना है, यूँ तो अब शहरों में जगह- जगह सुलभ शौचालयों की व्यवस्था भी है परन्तु गावों में जहाँ भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है वहां इसकी व्यवस्था करवाना साथ इसके बारे में सही और सटीक जानकारी भी फैलाना है, खुले में शौच से होने वाले नुक्सान के बारे में बताना है।
लाखों बच्चे कुपोषण का तो शिकार हो ही रहे हैं साथ ही अन्य बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाते हैं, न केवल बच्चे अपितु बुजुर्ग भी इससे होने वाली बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
जब समस्त सुविधाएं नहीं होती थीं तब खुले में बने शौचालयों के कारण हैजा, कालरा भी फ़ैल जाता था जो की महामारी का रूप ले लेता था।
तो आवश्य्कता है की आज हर घर में हर गांव में शौचालय की व्यवस्था बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। सड़को पर मल - मूत्र त्यागने वालों के लिए भी ठोस नियम बनाने की अव्सय्कता है, न केवल नियम बांये जाएं अपितु उन पर कठोरता से अमल लाने की जरूरत है।
अब हमको साथ मिलकर इस दिशा में जागरूकता फैलानी होगी और स्तिथि को बेहतर बंनाने की दिशा में हर मुमकिन कदम बढ़ाने होंगे। बस अब और नहीं देश, समाज, परिवार के स्वास्थ्य और स्वक्षता के लिए इंतज़ार नहीं कार्य करने होंगे।
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Thursday, November 12, 2015
रिश्ता भरोसे का / #madeofgreat
कुछ सच, कुछ पल ऐसे भी हैं इस जीवन के,
याद करके ही रोमांच सा भर जाता है तन में,
न थी कोई मंजिल न कोई मतलब था इस जीवन का,
अवसाद से भरी मैं कुछ इस तरह से खो गयी थी किसी राह में,
अपनों के बीच खड़े रहने की न थी ताकत हममें ,
हर रोज एक नयी उलझनों में उलझी थी जिंदगी ,
कोई अपनी नयी पहचान बनाने को बेताब थी मैं,
एक रोज किसी अपने ही अज़ीज़ ने रौशनी की किरण दिखा कर,
जिंदगी रोशन इस तरह से कि बस क्या कहें ,
माना बहुत छोटा था वो अज़ीज़ मेरा पर जो,
मेरे जीवन का मजबूत रिश्ता है कुछ उसके साथ इस तरह से,
थमा गया हांथो में में मेरे वो किसी कोहनूर से कम न था।
वक़्त ऐसा अब बदल गया है दोस्तों ,
तन्हाइयों को भी करना पड़ रहा है इंतज़ार हर पल मेरे लिए
कहीं आंधियों के बीच मेरे मन का अवसाद खो सा गया है ,
अब तो फुर्सत ही नहीं उलझनों के लिए भी ,
देखते वो जो अपने ही थे, ऐसी हेय नज़रों से ,
नज़र उनकी भी अब बदल सी गयी है,
हकीकत से ऐसे भी सामना होगा सोचा न था ,
लोगो को बदलते इस तरह देखना होगा सोचा न था ,
सूरज के उजाले का मंजर देखते ही रहने को मन करता है
ऐसी खुशनुमा जिंदगी जीने का अब मजा आने लग गया है ॥
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हर किसी के अंदर एक प्रतिभा छिपी होती है जरूरत है बस उसे सहारा देने और उजागर करने की, लियोनेल मेसी के भीतर भी अथाह प्रतिभा है जो आज के युवाओं के लिए एक आइकन हैं. उन्होंने टाटा मोटर्स के लिए कहा है टाटा मोटर्स के हर प्रोडक्ट मजबूत, और भरोसेमंद हैं। टाटा मोटर्स के बारे में और अधिक जानकारी के लिए नीचे के लिंक पर देखा जा सकता है -http://madeofgreat.tatamotors.com/
Saturday, October 31, 2015
मेरा सच्चा प्यार
हम तो बस हैं उस खुदा के मुरीद, जहाँ में जन्म लेने का मिला है जो अवसर हमको,
उसकी बनायीं धरा खूबसूरत, घाटियां खूबसूरत, पहाड़ खूबसूरत,
वादियां खूबसूरत, नदी की धारा मिले समंदर में वो नज़ारा खूबसूरत,
न कोई बना सकता इससे खूबसूरत कोई मंज़र खूबसूरत,
नज़र जाये जिस तरफ भी जिस शख्स पर वो हर शख्स खूबसूरत,
उसकी पूजा से मिले जो शांति वो सुकून बहुत ही खूबसूरत,
सोचते हैं सब मैं सबसे बड़ा, सबसे खूबसूरत मेरी नज़र में तो उसका नूर खूबसूरत,
उसके नैनों में खुद को बसा लूँ, दिल में अपने उसकी तस्वीर बसा लूँ ,
ऐ दुनिया बनाने वाले इस धरा पर तुझसे अलबेला न कोई और है ,
न है कोई इस जहाँ में जिसको चाहूँ इस कदर तू अपनी रहमत हम पर रखना,
हम तो बस है उस परमात्मा से प्यार , उसकी नज़रों में हैं हम सबसे खूबसूरत ॥
उसकी बनायीं धरा खूबसूरत, घाटियां खूबसूरत, पहाड़ खूबसूरत,
वादियां खूबसूरत, नदी की धारा मिले समंदर में वो नज़ारा खूबसूरत,
न कोई बना सकता इससे खूबसूरत कोई मंज़र खूबसूरत,
नज़र जाये जिस तरफ भी जिस शख्स पर वो हर शख्स खूबसूरत,
उसकी पूजा से मिले जो शांति वो सुकून बहुत ही खूबसूरत,
सोचते हैं सब मैं सबसे बड़ा, सबसे खूबसूरत मेरी नज़र में तो उसका नूर खूबसूरत,
उसके नैनों में खुद को बसा लूँ, दिल में अपने उसकी तस्वीर बसा लूँ ,
ऐ दुनिया बनाने वाले इस धरा पर तुझसे अलबेला न कोई और है ,
न है कोई इस जहाँ में जिसको चाहूँ इस कदर तू अपनी रहमत हम पर रखना,
हम तो बस है उस परमात्मा से प्यार , उसकी नज़रों में हैं हम सबसे खूबसूरत ॥
Thursday, October 29, 2015
मेरा शहर
ज़ुबाँ जिस शहर की तहज़ीब से भरी है,
नवाबों का शहर जिसे कहते हैं,
उसी लखनऊ शहर के हम रहने वाले हैं,
उस शहर और शहर की धरोहरों पर हमको बड़ा ही नाज़ है।
नवाबों का शहर जिसे कहते हैं,
उसी लखनऊ शहर के हम रहने वाले हैं,
उस शहर और शहर की धरोहरों पर हमको बड़ा ही नाज़ है।
Wednesday, October 7, 2015
अस्तित्व तेरा
मत सोचना इस जहाँ में तुझसे भी कोई है बड़ा, तेरे अस्तित्व के बीच बस पुरुष का है दम्भ खड़ा ,
डरता है इस बात से वो जन्म देने वाली ऐ नार तू न बढ़ जाये उससे आगे अपने क़दमों को बढ़ा,
जिस देश के कण- कण में बसी सीता, अहिल्या की कथा, उस देश के पुरषों में तेरा ही अस्तित्व है बड़ा ,
इस धरा की तू ही है जननी सत्य बस यही है न कुड और है बडा सृष्टि के रचयिता भी तेरे ही जने कोई भी सत्य न है इससे बडा
Tuesday, September 29, 2015
दरख्त एक रेगिस्तान का,
वो दरख्त था एक रेगिस्तान का,
रेतीली हवाओं के बीच खड़ा मदमस्त सा,
तपिश सूरज की सह कर भी,
थपेड़े गर्म हवाओं के सह कर भी मदमस्त था ,
जाने को जहाँ,इंसान भी हजार बार सोचता था
जिन राहों में कदम बढ़ाने को जहाँ हर कोई कतराता था ,
हर रोज एक टहनी को फैलाते हुए वो दरख्त था मदमस्त सा ,
भीतर की खलिश को न अपने पत्तों पर भी न आने देता,
सूख रही थी टहनियां तेज आंधियों से फिर भी,
मिटने न दे रहा था फिर भी अपने अस्तित्व को दरख्त वो मदमस्त सा,
रोज एक न जाने कहाँ एक पंक्षी से आकर बैठ उस दरख्त पर गया ,
सवाल अनेकों उमड़ रहे थे उसकी आँखों में,
थोड़ा सा दम भर पूछा जो उसने उस दरख्त से,
क्यों यहाँ बियाबान, वीरान सी धरा पर हो अकेले तुम,
क्यों सहते हो तपिश इस रेगिस्तान की,
है कौन यहाँ जिसको है जरूरत तुम्हारी ,
एक मौन छाया दो पल को उस रेगिस्तान में,
निगाहों में मुस्कुराहट थी उस दरख्त की,
जुबां पर ताले लग गए उस पंक्षी के,बोला जो दरख्त वो
तुमको है मेरी जरूरत है ऐ दोस्त मेरे
न होता गर मैं इस सूनसान रेगिस्तान में,
उड़ते-उड़ते थक गए थे जब तुम,
पंखों से तुम्हारे जान सी निकल रही थी जब,
गर न होता मैं इस धरा पर,
क्या इस गर्म, तपती रेत पर सुस्ताते तुम ,
मत सोच ऐ मेरे दोस्त इस जहाँ में,
कोई नही है जिसके वजूद का न हो अस्तित्व यहाँ ,
बना है हर कोई हर किसी के लिए, हो अलग भले ही इस जहाँ में ॥
Monday, September 7, 2015
#My2MinutePoem बस यूँ हीं
हम शबनम की वो बूँद हैं,
हाथों से यूँ ही गुम हो जायेंगे,
पर सितारों की वो टिमटिम हैं,
दिलों के आस्मां पर हरदम ही रह जायेंगे,
इस खौफ के साथ जीते ही रहेंगे,
न जाने कब इस शाम का दिया,
हवा के एक झोंके से बुझ जायेगा,
एक किरण सी इस मन के किसी कोने में फिर भी है,
एक रोज़ आकर वो आसरा हमें दे ही जायेंगे,
मेरे लवों को अपने प्यार से सी जायेंगे ॥
हाथों से यूँ ही गुम हो जायेंगे,
पर सितारों की वो टिमटिम हैं,
दिलों के आस्मां पर हरदम ही रह जायेंगे,
इस खौफ के साथ जीते ही रहेंगे,
न जाने कब इस शाम का दिया,
हवा के एक झोंके से बुझ जायेगा,
एक किरण सी इस मन के किसी कोने में फिर भी है,
एक रोज़ आकर वो आसरा हमें दे ही जायेंगे,
मेरे लवों को अपने प्यार से सी जायेंगे ॥
Sunday, September 6, 2015
अल्फाज़ मेरे
अल्फाज़ मेरे उनको समझा सकूँ वो अलफ़ाज़ मैं कहाँ से लाऊँ,
दिल के हालत उनको समझा सकूँ वो जज्बात कहाँ से लाऊँ ,
आवाज़ सूना सकूँ अपने धड़कन की वो आवाज़ कहाँ से लाऊँ ,
आँखों की भाषा पढ़ लें वो ऐसी भाषा मैं कहाँ से लाऊँ ,
लव की थरथराहट से ही मेरे सीने में छिपे राज वो पढ़ सकें ,
इंतज़ार कर रही हूँ जिस पल उनको अपने हालत बयां कर सकूँ ,
किसी रोज़ वो खुद ही आकर कह दें तेरे हर राज़ को समझता थे हम,
तुझे सताने के बहाने ढूंढते थे हम वरना तेरे पहलू में आकर ही
हर बात समझ लेते थे ऐ मेरे हमदम ॥
दिल के हालत उनको समझा सकूँ वो जज्बात कहाँ से लाऊँ ,
आवाज़ सूना सकूँ अपने धड़कन की वो आवाज़ कहाँ से लाऊँ ,
आँखों की भाषा पढ़ लें वो ऐसी भाषा मैं कहाँ से लाऊँ ,
लव की थरथराहट से ही मेरे सीने में छिपे राज वो पढ़ सकें ,
इंतज़ार कर रही हूँ जिस पल उनको अपने हालत बयां कर सकूँ ,
किसी रोज़ वो खुद ही आकर कह दें तेरे हर राज़ को समझता थे हम,
तुझे सताने के बहाने ढूंढते थे हम वरना तेरे पहलू में आकर ही
हर बात समझ लेते थे ऐ मेरे हमदम ॥
Saturday, September 5, 2015
शिक्षक दिवस
जिन राहों पर भारी क़दमों से रखता है, हर बचपन अपने क़दमों को,
एक हाथ जो सम्हाल कर, सही मार्ग दिखा कर चलाता है सबको ,
गलतियों पर डांट कर, अच्छाइयों पर ताली बजा प्रोत्साहित करता है जो,
माता - न पिता होता है, पर उनसे भी बढ़कर भलाई का मार्ग दिखाता है जो,
ऊंचाइयों पर पंहुचा दें, एक ही मकसद होता करता है मार्ग दर्शन जो ,
अध्यापक हर जीवन में हजरूरी, ये अब क्या समझना हमको ,
एक ही दिन उनके सम्मान का हो ऐसा तो जरूरी नहीं,
हर बचपन को सीखना होगा सम्मान करना उनका,
जिस समाज में अपमानित किया जा रहा है उनको ,
जो बनाते है भविष्य राष्ट्र के भावी नवजीवनों का,
अब तो उनके सम्मान के हक की लड़ाई के वास्ते बढ़ना होगा हर किसी को ,
सिर्फ अध्यापक दिवस मना कर ही जिम्मेदारियों से न भागना होगा,
शिक्षक और शिष्य के बीच फिर समन्वय बनाना होगा ॥
एक हाथ जो सम्हाल कर, सही मार्ग दिखा कर चलाता है सबको ,
गलतियों पर डांट कर, अच्छाइयों पर ताली बजा प्रोत्साहित करता है जो,
माता - न पिता होता है, पर उनसे भी बढ़कर भलाई का मार्ग दिखाता है जो,
ऊंचाइयों पर पंहुचा दें, एक ही मकसद होता करता है मार्ग दर्शन जो ,
अध्यापक हर जीवन में हजरूरी, ये अब क्या समझना हमको ,
एक ही दिन उनके सम्मान का हो ऐसा तो जरूरी नहीं,
हर बचपन को सीखना होगा सम्मान करना उनका,
जिस समाज में अपमानित किया जा रहा है उनको ,
जो बनाते है भविष्य राष्ट्र के भावी नवजीवनों का,
अब तो उनके सम्मान के हक की लड़ाई के वास्ते बढ़ना होगा हर किसी को ,
सिर्फ अध्यापक दिवस मना कर ही जिम्मेदारियों से न भागना होगा,
शिक्षक और शिष्य के बीच फिर समन्वय बनाना होगा ॥
Monday, August 24, 2015
फिर याद आ रहा है
न जाने क्यों वो बचपन आज इस कदर याद आ रहा है,
मोहल्ले में बच्चों संग हुल्लड़ मचाना याद आ रहा है,
बादलों में बनते बिगड़ते चेहरे ढूंढना फिर याद आ रहा है,
बारिशों में भीग कर स्कूल से लौटना फिर याद आ रहा है,
गिट्टी से खेलना और मिटटी में सन जाना याद आ रहा है,
झूले पर पेंगे मारना और अचानक गिर कर उठ जाना याद आ रहा है,
जेबों में मुरमुरा, रेवड़ी भर कर भाग जाना याद आ रहा है,
उसकी रचना कुछ इस तरह होती, न जाता भाग यूँ बचपन हमसे ,
मैं ही नहीं शायद हर किसी को दिन बचपन के हमेशा ही याद आते हैं,
एक दुसरे संग मुस्कुराते, खिलखिलाते,
मस्तियों भरा वो बचपन फिर याद आ रहा है,
है कोई जो मुझको बस एक बार लौटा के दे जाये,
बीते बचपन के दिन जो याद मुझको इस कदर आ रहा है ॥
मोहल्ले में बच्चों संग हुल्लड़ मचाना याद आ रहा है,
बादलों में बनते बिगड़ते चेहरे ढूंढना फिर याद आ रहा है,
बारिशों में भीग कर स्कूल से लौटना फिर याद आ रहा है,
गिट्टी से खेलना और मिटटी में सन जाना याद आ रहा है,
झूले पर पेंगे मारना और अचानक गिर कर उठ जाना याद आ रहा है,
जेबों में मुरमुरा, रेवड़ी भर कर भाग जाना याद आ रहा है,
उसकी रचना कुछ इस तरह होती, न जाता भाग यूँ बचपन हमसे ,
मैं ही नहीं शायद हर किसी को दिन बचपन के हमेशा ही याद आते हैं,
एक दुसरे संग मुस्कुराते, खिलखिलाते,
मस्तियों भरा वो बचपन फिर याद आ रहा है,
है कोई जो मुझको बस एक बार लौटा के दे जाये,
बीते बचपन के दिन जो याद मुझको इस कदर आ रहा है ॥
Monday, July 27, 2015
व्यथा
विदा हो गया आज इस धरा से आज वो,
अपनी माँ की आँखों का तारा था जो,
नरम हांथों में पला था माँ ने न रहा आज वो,
सपना सा लगा सुना जब मैंने विश्वास ही न हुआ,
अपने हाथों से निवाले कभी मैंने भी खिलाये थे जिसको ,
खनखनाहट सी हंसी संग इधर- उधर डोलता था वो ,
न जाने कब और क्यों भटक राहों में गया था वो,
कुसंगतों में फंस जीवन की दिशा को मोड़ लिया था यूँ,
न संग कोई अपना रहा न गैरों ने साथ निभाना चाहा,
चूर-चूर कर दिए थे सपने देखे थे माँ ने खातिर जो,
आहिस्ता -आहिस्ता कदम अब लड़खड़ाने लगे थे यूँ ,
कुछ दिनों पहले उसके अस्थि पंजर मात्र तन को देख सिहर उठा था मन मेरा,
यही जीवन की है व्यथा जाना हर किसी को पड़ता है आया है धरा पर जो,
उदास हो गया है मन मेरा भी किसी के आँगन का उजाला मिटा है जो ,
वो एक सुबह आई ऐसी छोड़ बेसहारा अपनों को दूर गगन में गया था वो ॥
Saturday, July 11, 2015
helthy honey
picture taken by me .
डाबर हनी शुद्ध और स्निग्ध होने के साथ ही स्वादिष्ट भी है। बच्चों को पराठे में ,ब्रेड में लगा कर दिया जाता है।
शहद चीनी की जगह इस्तेमाल किया जाता है,धरती पर चीनी का सबसे पुराना विकल्प है शहद , शहद एक बहुत ही हेल्थी ऑप्शन है चीनी का.
इसका उत्पादन सदियों से मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है,मधुमक्खी पुष्प के पराग कण का रस लेकर छत्ते बनती है जिसमें ही शहद निकाला जाता है।
इसका रंग हलके भूरे रंग से मिलता जुलता होता है ,स्निग्ध इतना की देखते ही सेवन का मन कर जाये ,
नियमित रूप से शहद का इस्तेमाल मोटापे को कम करता है ,शरीर में स्फूर्ति को बनाये रखने में सहायक होता है। प्रातः काल में नित्यक्रिया से निर्व्रत होकर शहद को पानी में मिलाकर पीने से न केवल मोटापा कम होता अपितु शरीर में ऊर्जा बढ़ाने में सहायक है.
शहद में आयरन,कैल्सियम, विटामिन ए ,बी और च भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
इसके रस में अदरक का रस या सोंठ मिलाकर खाने से खांसी में आराम मिलता है।
रक्त शुद्धि और ह्रदय से सम्बब्धित बीमारियों में भी शायद बहुत कारगर है।
शहद का प्रयोग न केवल शरीर के लिए अपितु धार्मिक कार्यों में भी किया जाता है ,पूजन में शहद से अभिषेक किया जाता है, चरणामृत में मिलाया जाता है, साथ ही शहद का इस्तेमाल भगवान के अभिषेक में भी प्रयुक्त होता है। शहद से नियमित रूप से शिवाभिषेक करने से जीवन की समस्त परेशानियों का अंत होता है ।
Monday, June 29, 2015
फर्ज है हमारा,
एक आंसू भी निकलने न दिया जिन्होंने हमारा,
उनकी आँखों को नम न करने का फर्ज है हमारा,
दौड़ आते थे जो एक ही आवाज़ पर हमारी ,
उनकी आवाज़ को अनसुनी न करें फर्ज है हमारा,
अपनी बातों से मन जिनका बेचैन किया था कभी हमने,
उनकी बातों को बैठ सुनले ये ही फर्ज है हमारा,
हर जिद को पूरा किया है जिन्होंने हमारी ,
छोटी- छोटी जरूरतों को हम करें पूरीं फर्ज है हमारा ,
सजा कमरे को हमारे खुद को कोने में रखा था जिन्होंने ,
उनकी खातिर आशियाना सजाएं ये फर्ज है हमारा ॥
Sunday, June 21, 2015
विश्व योग दिवस
न होता गर कोई लाभ तो योग पर इतना जोर न होता ,हर तरफ योग करने के लिए कोई जोर न होता ,
आप गर योग नहीं करेंगे तो कोई आपको बांध कर नहीं कर सकता।
आज जिंदगी यूँ लगती है की जैसे बस भागी जा रही है, हर कोई तनहा भी है, और हर कोई परेशान भी ऐसे में योग ही एक ऐसा साधन है जो आपकी मानसिक,शारीरिक और पारिवारिक जीवन में शांति ला सकता है ऐसा योग गुरुओं का मानना है।
योग दिवस के लिए जहाँ तक मेरा मानना है की यह एक पर्व की तरह मनाया जाना चाहिए ,केवल आज ही नहीं परन्तु हमेशा ही एक पर्व की तरह मनाया जाना चाहिए।
जिस भारत देश को १० लोग जानते थे आज विश्व योग दिवस के जरिये ही काम से काम विश्व भर में जाना जाने लगा है।
कोई कहता है की ये सब नौटंकी है तो ठीक है जो लोग कह रहे है क्या वो ये नौटंकी कर सके नहीं न, फिर जब अंगूर न मिलें तो खट्टे है।
हमें तो गर्व होना चाहिए युगों से चली आ रही परम्परा को आज नया आयाम मिला है।
Sunday, June 14, 2015
बारिश
तपिश से जलती, तप्ती धरा पर बारिश की दो ही बूंदों ने जैसे अमृत सी राहत दी है ,
यहाँ, वहां, इधर- उधर धीरे से मानों मानसून ने दस्तक दी है ,
सूखे से, मुरझाये से खड़े दरख्तों पर बूँद जैसे मोती से चमक रहे हैं ,
गर्द धूल की जिन पर जम गयी थी बूंदों में नहाकर निखर गयी है ,
सुर्ख लाल दहकते चेहरों पर एक बार रौनक फिर लौट आई है ,
मौसम की पहली ही बारिश में हर ओर हरियाली सी छा गयी है ॥
Friday, May 15, 2015
अहसास
सुना हर किसी से था माँ का प्यार अनमोल है होता ,
सुना हर किसी से था माँ का अहसास बड़ा कोमल है होता,
सुना हर किसी से था उसका दामन बड़ा खुशनुमा है होता,
सुना हर किसी से था माँ के प्यार में बड़ा ही बल है होता ,
सुना हर किसी से था माँ का आँचल बड़ा सुरक्षित होता,
काश एक पल के वास्ते ही मुझे वो प्यार मिला होता ,
काश एक घडी के वास्ते ही मुझे वो अहसास हुआ होता ,
काश एक रोज के वास्ते ही मैंने वो दामन भिगोया होता,
काश कभी मुझे भी एक पल के लिए ही वो होता,
काश उसके आँचल में छिपने का एक पल मिला होता,
ऐ परवरदिगार गर ऐसी ख़ुशी का अहसास भी होता,
ऐ आसमान के फरिस्ते मुझे तुझसे न कोई गिला शिकवा होता ॥
सुना हर किसी से था माँ का अहसास बड़ा कोमल है होता,
सुना हर किसी से था उसका दामन बड़ा खुशनुमा है होता,
सुना हर किसी से था माँ के प्यार में बड़ा ही बल है होता ,
सुना हर किसी से था माँ का आँचल बड़ा सुरक्षित होता,
काश एक पल के वास्ते ही मुझे वो प्यार मिला होता ,
काश एक घडी के वास्ते ही मुझे वो अहसास हुआ होता ,
काश एक रोज के वास्ते ही मैंने वो दामन भिगोया होता,
काश कभी मुझे भी एक पल के लिए ही वो होता,
काश उसके आँचल में छिपने का एक पल मिला होता,
ऐ परवरदिगार गर ऐसी ख़ुशी का अहसास भी होता,
ऐ आसमान के फरिस्ते मुझे तुझसे न कोई गिला शिकवा होता ॥
Monday, May 11, 2015
मेरी माँ
कोख में छिपी अजन्मी एक ममता भरी माँ की बेटी मैं थी,
उसके गर्भ मैं इस तरह सुकून और सुरक्षति मैं थी,
जन्मते ही आँगन में मेरी किलकारियों की गूँज से चहक उठी माँ थी ,
अपने सपनों को मुझमें साकार करने के चाह मेरी उस माँ को थी ,
आँचल में अपने छिपा मेरे उदर को भर खुश हो लेती वो मेरी माँ थी ,
मेरी हर मुस्कुराहट पर न्योछावर हुए जाती वो मेरी माँ थी ,
हर रात थपकियों देकर मुझे सुलाती वो मेरी माँ थी ,
खुद को भिगो मुझे सूखी चादर पर सुलाती वो मेरी माँ थी ,
खुद को जगा मुझे रोज नींद भर सुलाती वो मेरी माँ थी ,
आहिस्ते से जब चलना सीखा मैंने ,ऊँगली थाम चलना सिखाती वो माँ थी ,
उम्र के हर मोड़ पर मेरा सहारा बनी वो मेरी माँ थी ,
जरूरत हुई जब मेरे दामन को दुनिया से बचातीवो मेरी माँ थी ,
मेरे हर स्वप्न को पंख लगाती वो मेरी माँ थी ,
मेरे क़दमों को सही राह दिखाने वाली वो सबसे प्यारी वो मेरी माँ थी ,
इस धरा पर उस जहाँ की सबसे खूबसूरत वो नज़राना मेरी माँ थी,
जन्मों तक तेरे ही साथ रहूँ माँ बस इतनी सी चाह मेरे दिल में थी ,
शायद मुझसे ज्यादा ऐ मेरी प्यारी माँ, तेरी उस खुदा को जरूरत थी ॥
Sunday, May 3, 2015
भूकंप
आहट भी न हुई धरा काँप गयी थी कुछ इस तरह ,
पल में बिखर इमारतें गयीं थी सूखे पत्तों की तरह ,
वो जो दुश्मन लगते थे आज लग रहे दोस्तों की तरह ,
फिर न काँपे धरती इस डर से बीत रहा पल भी सदियों की तरह ॥
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जागे भी न थे वो अभी थरथरा ये धरती गयी ,
चादर में लिपटे मासूमों की सांसें भी थम गयी ,
माँ खिलाती निवाला जिनहें ,उन्हें धरती निगल गयी ,
आह न हुई आवाज न हुई मौत उन आगोश में ले गयी ॥
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एक इंच धरा के वास्ते रिश्तों में बढ़ रही हैं दूरियां ,
एक फ़ीट जमीं के वास्ते चलती हैं चाकू छुरियाँ ,
भगवान तेरी बनायीं धरा पर बहती है सुन्दर नदियां ,
हलके से भी हिल जाये धरा गर बहती हैं खून की नदियां ॥
Wednesday, March 11, 2015
वजूद उनका
सर्द दोपहर,कुहासे में लिपटे सूरज से छन कर आती धूप,
तन को अपने सेंकते देखा जो उनको हमने ,
हाथों की सलवटों और चेहरे की झुर्रियां ,
अहसास उम्र का दिलाने लग गयीं हैं ,
निगाहों में बस अब एक चमक सी ही रह गयी है ,
वरना सांसें तो अंत की दहलीज पर जा खड़ी हैं ,
एक झटका सा मन को यूँ लगा ?
उनकी यादें क्या उनके साथ ही जाएँगी ,
ऐसा होने न देगा मन मेरा ये कह उठा,
सोचा की जीवन था उनका पर पाया हमने भी बहुत है ,
उनके जीवन की हर साँस से हमने भी सीखा बहुत है ,
क्या करूँ कुछ ऐसा की उनके होने का,
अहसास जीवन भर रह जाये साथ हमारे ,
सोच मन में थी ,समेटने की चाह दिल में है ,
उनके जीवन की हर याद अपना बना लूँ ,
इस अहसास के संग हर खट्टी-मीठी याद को पन्नों में बसा लूँ
उनके वजूद के मिटने से पहले उन्हें दिल के कोनों में बिठा लूँ ,
हर याद उनकी अपने संग कुछ इस तरह से संजों लूँ ,
तन को अपने सेंकते देखा जो उनको हमने ,
हाथों की सलवटों और चेहरे की झुर्रियां ,
अहसास उम्र का दिलाने लग गयीं हैं ,
निगाहों में बस अब एक चमक सी ही रह गयी है ,
वरना सांसें तो अंत की दहलीज पर जा खड़ी हैं ,
एक झटका सा मन को यूँ लगा ?
उनकी यादें क्या उनके साथ ही जाएँगी ,
ऐसा होने न देगा मन मेरा ये कह उठा,
सोचा की जीवन था उनका पर पाया हमने भी बहुत है ,
उनके जीवन की हर साँस से हमने भी सीखा बहुत है ,
क्या करूँ कुछ ऐसा की उनके होने का,
अहसास जीवन भर रह जाये साथ हमारे ,
सोच मन में थी ,समेटने की चाह दिल में है ,
उनके जीवन की हर याद अपना बना लूँ ,
इस अहसास के संग हर खट्टी-मीठी याद को पन्नों में बसा लूँ
उनके वजूद के मिटने से पहले उन्हें दिल के कोनों में बिठा लूँ ,
हर याद उनकी अपने संग कुछ इस तरह से संजों लूँ ,
Friday, January 30, 2015
दास्ताँ
कुछ थे सहमे से, कुछ था सहमे से हमारे कदम,
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
कांपता सा बदन, डरा हुआ सा था दिल हमारा ,
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
अनजान थे वो रास्ते,अनजान सभी थे रिश्ते,
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
हाथ थाम आपका चल पड़े आपके साथ विश्वास दिल में था भरा,
अर्पण किया जिन्हें सब वो सम्हालेंगे मेरे कदम
मुश्किलों भरे इस सफर में,अनजान डर दिल में लिए पर विश्वास आप पर कर,
रखा आपके आँगन में कदम
आंसू ढलक निशाँ गालों पर बनाएं
इससे पहले ही आपने पहलू में छिपाया आपने ,
अब कोई ख्वाहिश नहीं, बाकी न कोई शिकवा है सनम ,
हर भूल मेरी माफ़ करना है इल्तज़ा मेरे सनम ,
एक तमन्ना है बस इस दिल में ,
यूँ चलना संग मेरे मिला क़दमों से कदम ॥
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
कांपता सा बदन, डरा हुआ सा था दिल हमारा ,
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
अनजान थे वो रास्ते,अनजान सभी थे रिश्ते,
रखा था जिस रोज हमने आपके आँगन में अपने कदम ।
हाथ थाम आपका चल पड़े आपके साथ विश्वास दिल में था भरा,
अर्पण किया जिन्हें सब वो सम्हालेंगे मेरे कदम
मुश्किलों भरे इस सफर में,अनजान डर दिल में लिए पर विश्वास आप पर कर,
रखा आपके आँगन में कदम
आंसू ढलक निशाँ गालों पर बनाएं
इससे पहले ही आपने पहलू में छिपाया आपने ,
अब कोई ख्वाहिश नहीं, बाकी न कोई शिकवा है सनम ,
हर भूल मेरी माफ़ करना है इल्तज़ा मेरे सनम ,
एक तमन्ना है बस इस दिल में ,
यूँ चलना संग मेरे मिला क़दमों से कदम ॥
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