Wednesday, December 28, 2016

लगता बेगाना सा है,


हर कोई अपना सा है, पर लगता बेगाना सा है,
यहाँ भीड़ में  हैं सब खड़े, पर अकेले जहाँ में लगते,
हाँ, इस बदलते वक़्त में हर कोई रिस्ते तो निभा रहा है,
पर चुपचाप अपनी उँगलियों को उलझा सा रहा है,
जहाँ भर को अपने होने का अहसास दिला  रहा है,
पास होकर भी अपनों से दूर हो रहे हैं सब यहाँ,
कभी सोचती हूँ तकनीक के  युग में सब अच्छा सा है,
पर सब यहाँ पराया होने का अहसास दिला रहा है,
कोई अब घरों के छज्जो पर नज़र नहीं आता है,
पार्कों की चहल- पहल न जाने कहाँ गुम  सी हो गयी  है,
कोई घर के आंगन में  अब चहचहाता नहीं है,
वो शाम ढले चौबारों में अब रौनकें कहाँ ढूंढें,
वो सर्द सुबह में धुप में सेंकते किसे ढूंढें,
अब तो दालान भी सूने हो गए हैं,
बंद कमरों में एक दुसरे के पास होकर भी दूर हम हो गए है,
दावतों में भी अब चुपचाप निवाले सरकाए जाते हैं,
दिल अज़ीज़ भी अब पराये से लगने लगे हैं,
कभी सर उठा कर चलने वाले सर झुका कर चलने लगे हैं,
व्हाट्स अप और फेसबुक की दुनिया में खोये रहे,
 इनसे ही टूटते हुए रिश्तों को  हमने देखा हैं,
रिश्तों के धागों में गांठ लगते हुए  इनसे ही देखा है,
एक दुसरे का विशवास बिखरते हुए हमने देखा है,
नहीं कहती कि स्मार्ट फ़ोन बंद हो जाएं,
'पर ये भी नहीं चाहती, इसमें ही रिश्ते सिमट जाएं,
नहीं चाहती ये तकनिकी दुनिया खत्म हो जाये,
पर नहीं चाहती,  इनसे ही रिश्ते खत्म हों जाएं॥

#AloneInWorldOfTechnology



Sunday, December 4, 2016

थोड़ा सा रामराज्य

इन दिनों कुछ लोग बदलने से लगे हैं,
पडोसी भी अब आकर दर्द बाँटने लगे हैं,
'न किसी के घर के ताले अब टूट रहे हैं,
न किसी की जेब पर अब डाके पड़ रहे हैं,
लगने यूँ लगा है की जैसे थोड़ा- थोड़ा ही सही,
देश अब रामराज्य की तरफ बढ़ रहा है,
लुट  तो सब  गए है सभी, फिर भी, 
शिकायत न कोई दर्ज करा रहा है,
कानून भी लगता है दायरे में सिमट सा गया है,
धर्मस्थल पर अब किसी दंगाई की नज़र भी न पड़ रही है,
दुकानों में भी सन्नाटा सा पसर गया हिअ,
जिनकी जेबों में मैले- कुचले नोट होते थे,
अचानक से वो ही अमीर हो गए हैं,
बंगलों के दरबान भी साहब से रईस हो गए हैं,
नींद साहबों की उड़ती देख दबी हंसी में कहकहे लगा रहे हैं,
खुश हैं सब ये सोच कर दूसरा दुखी है,
दूध की नदियां जिस देश में थी बहती,
वहां नोट देखो  नदियों में बह रहें हैं, 
एक ही रात में देखो कैसी नींद उड़ाई है,
गरीबों को देखो कैसे नोटों की गड्डियां थमाई हैं,
हर रोज़ नए जुमलों से धनासेठों की कैसे नींद उड़ाई जा रही है,
चलो थोड़ा सा ही सही रामराज्य जैसे आ गया है ॥