Wednesday, December 6, 2017

#myinspiration-- my nephew

बेवजह सी जिंदगी मैं कुछ इस तरह से जिए जा रही थी,
चाह तो बहुत थी पर कोई राह नहीं सुझाई दे रही थी,
अचानक वो एक फरिस्ता सा मेरी जिंदगी को रोशन सा कर गया,
कोई पूछे तो कौन था वो! क्या बताऊँ किसी को कौन वो अपना था,
उम्र भले ही पांच गुने उसकी कम थी,
मेरी राहों में दिए इस तरह जला वो गया था,
मेरा अपना वो मुझे एक नयी राह जीने की दिखा गया था,
दूसरों की जी हुज़ूरी में जिंदगी मेरी जो कट रही थी,
कभी इसकी, कभी उसकी सुनते जिंदगी कट रही थी,
न कोई मतलब, न कोई मकसद बस जिंदगी यूँ ही जिए जा रही थी,
कुछ खुद के लिए भी करूँ उस राह को दिखा वो गया था,
अपनी पहचान खुद बनाऊँ ये जज़्बा जगा गया वो था,
मुझे आसमान की तरफ देखने का हक दिला वो गया था,
हाँ वो छोटा सा मेरा बेटा सा मेरा भतीजा,
मेरी प्रेरणा बन मुझे जीना सीखा गया था ||

#Inspiration

Tuesday, November 7, 2017

बंद दरवाजों से छनती धूप सी मैं हूँ / Indispire #yourself




 शायद कुछ समय पहले ही इसी विषय से मिलता जुलता विषय Indispire Edition 132   था जिसमें मैंने अपनी भावनाओं को कविता के रूप में प्रस्तुत किया था, आज Indispire Edition 194 #yourself के सन्दर्भ में उसी रचना को जोड़ते हुए खुद की भावनाओ को एक बार फिर  प्रस्तुत कर रही हूँ।

इंसान चाहे कैसा हो कितना ही गरीब हो कितना ही अमीर हो, रंग रूप में कैसा हो, परन्तु हर शख्स की शख्सियत की एक अलग पहचान होती है, इस बात को हमें खुद समझना चाहिए।

                पूछता है मन मेरा हूँ कौन मैं, मन के किसी कोने से छलकती क्या कोई तरंग हूँ मैं,

                                  अपने में ही खुद को तलाशती हुई क्या कोई ग़ज़ल हूँ मैं, 

           सपनों को बुनती हुई मकड़ी की तरह कहीं खुद में ही तो नहीं फंसती जा रही हूँ मैं,

                               एक आवाज़ कहीं दिल के कोनो से आयी, जैसी भी हूँ मैं पर सबसे जुदा हूँ मैं.....




पूर्व रचना :-




जैसी भी हूँ, सबसे जुदा मैं हूँ,
अलग दुनिया में लिखती अपनी दास्तान हूँ,
खुद के बनाये पन्नों में बिखराती अपनी  दुनिया में मशगूल मैं हूँ,
न कोई मुझसे ऊपर, न कोई मुझसे अच्छा,
करती हूँ नाज़ खुद पर हूँ,
अपने मन में,  अपनी ख़ुशी में झूमती नाचती मैं हूँ,
शिकवा करने वालों से दूर रह कर खुशबू खुद की फैलाती मैं हूँ,
बंद दरवाजों से छनती धूप सी मैं हूँ,
ऊषा की किरणों से रक्तिमा फैलाती ख़ुशी की किरण हूँ,
जो दिल कहे मानती मैं हूँ, 
जो दिमाग कहे वो ही करती मैं हूँ,
 न डरना चाहती हूँ,
न डराना चाहती हूँ,
संगीत की थिरकती तरन्नुम मैं हूँ,
किताबों के पन्नों में लिखी  दास्ताँ सी मैं हूँ,
इतिहास बनाना चाहती मैं हूँ,
भविष्य के सपनों में उड़ना चाहती मैं हूँ,
खुद को सबसे आगे मानती हूँ,
हाँ खुद को खुद से ज्यादा जानती मैं हूँ,
जैसी भी हूँ, सबसे जुदा मैं हूँ ॥

Saturday, September 2, 2017

जाना पहचाना सा लग रहा है,

आसमान आज कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है,
वो ही बचपन वाला जैसा ही कुछ दिख रहा है,
दूर गगन में चुपके से बादलों में झांक चाँद भी  रहा है,
खूबसूरती वो अपनी कुछ इस तरह से बिखरा रहा है,
हर ओर अपना दूधिया उजाला वो चमका रहा है,
आज फिर एक बार आसमान वो बचपन वाला ही लग रहा है,
छिटपुट बादलों का जमावड़ा भी इधर उधर इठला रहा है,
न जाने क्यों आज आसमान फिर कुछ जाना पहचाना सा लग रहा है,


Wednesday, June 7, 2017

कर्ज

कर्ज इतना है तेरे अहसानों का,
जन्म हज़ार लें फिर भी न चुका पाऊँगी,
मेरे हर सपने के आगे खड़ी थीं तुम इस तरह,
अँधियों से लड़ना सिखाया तुमने,
ज़माने में चलना सिखाया तुमने,
अंधेरों से लड़ना सिखाया तुमने,
हर घडी मेरे साथ खड़े होकर,
 अपनों से लड़ना सिखाया तुमने,
अपनी ख़्वाहिशों को ताले में रखकर,
मेरे अरमानों को पूरा किया तुमने,
मेरी खातिर अकेले में आँसू भी बहाया तुमने,
अब तो इल्तज़ा इतनी सी उस खुदा से है,
गर जनम हो दुबारा मेरा,
तेरे ही लहू का क़तरा बन जनम लूँ मैं,
उतार सकूँ कुछ तो कर्ज मैं तेरा,

Thursday, April 13, 2017

सुनाएं किसको,

                                   आज फिर दिल तोड़ चल दिए वो इस तरह,
                                   एक बार फिर मन उदास कर चल दिए इस तरह से वो,
                                  सुनाएं किसको,  मन में उमड़ते सवालों को
                                  क्यों हर बार गलती करके भी मुकर जाते हैं वो,
                                  चाहा हमने दिल की गहराइयों से उनको था,
                                  हर बार क्यों दिल तोड़ के चले जाते हैं वो,
                                हम चले थे अपना बनाने ,  बेगाना कर क्यों चले जाते है वो,
                                  यूँ इस तरह से पराया कर दिया करते हैं क्यों,
                                 मुझे इस तरह तन्हाई में छोड़ क्यों चले जाते हैं वो | | 

Thursday, March 16, 2017

बस यूँ ही

यूँ ही दिल के आइनों में झांक कर देखो कभी,
आंख बंद करके तेरी ही सूरत  निहारती हूँ,
खुली आँखों से तेरे ही सपने  बुनती हूँ,
तेरी चाहत में इस कदर डूब गए गए हैं,
नज़र कोई और आता नहीं मुझको, 
कोर से एक आँसू न गिर जाये इसी फ़िक्र में जिए जाती हूँ,
तेरी यादों के सहारे जिंदगी हूँ ही गुजारे जाती हूँ ॥ 

Wednesday, March 8, 2017

कैसी है दुविधा ये मेरी,

आँचल मेरा सरकने लगा है  आहिस्ते से सर का  ,
दूसरों को  बेपर्दा होता  देख,
नज़रें फिर भी झुका कर चलती हूँ
जिनसे परदे किया करती थी कभी  मैं,
जुबाँ भी आहिस्ते से ही खुलती है, फिर भी डरती हूँ,
कहीं ज़माने में रुसवा न हो जाऊँ  अपनी बेपर्दगी से,
इस कदर जमाना बदल गया है, सांसे हवा में काँप जाती हैं,
नहीं किसी का डर निगाहीं में,
अब नहीं शर्म किसी की आँखों में रह गयी है,
कैसी है दुविधा ये मेरी,
ज़माने संग चलती हूँ तो बेपर्दा होती हूँ,
दिल की सुनूँ तो उनकी नज़रें नही उठती मेरी तरफ,
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मुझे पूरा तोड़ देता है तेरा आधे मन से बात करना
मुझे उदास यूँ ही कर जाता है तेरा नज़रों को मोड़ लेना,
तू कहे न कहे, मैं समझ तेरी मन की बातों को हूँ,
मुझे हर दम सुस्त करता, तेरा मुझको न समझ पाना





Thursday, January 12, 2017

रिश्तों के मायने

                                     यही है आज के बदलते युग और स्मार्ट फ़ोन की सच्चाई 


जिंदगी बदल सी गयी है आज, रिश्तों के मायने भी बदल रहे हैं,


उँगलियों पर रिश्ते यहाँ कुछ इस तरह से निभाए जा रहे हैं,


अपनों से दूर परायों को अपना बनाते जा रहे हैं,


कुछ छिपा कर तो कुछ रिश्ते खुले आम निभाए जा रहे हैं,


कोई दगा अपनों को दे रहा परदे में रह कर,


बेपर्दगी की इन्तहां कुछ इस कदर बढ़ रही है,


छिपाना था जिससे उससे ही बेपर्दा हुए जा रहे हैं,


संग दिल अज़ीज़ के बैठ परायों की बातों पे मुस्कुरा रहे हैं,


यहाँ अपने ही पानों से हर रोज़ दूर होते जा रहे हैं,


जिनसे निभानी थी मोहब्बत, उनसे ही बेवफाई किये जा रहे हैं,


यहाँ हर किसी के रिश्तों के मायने आज बदल रहे हैं ॥ 


Sunday, January 1, 2017

साल नया




अतीत भया जो बीत गया, कल पुराना था साल, आज नया,
किसी को दर्द बेपनाह, ख़ुशी किसी को असीम दे गया,
अपनों से जुदा कोई तो, किसी को साथ मिल गया  नया,
खट्टी और मीठी यादों का फिर एक गुजर दौर गया,
फिर सुबह सूरज, एक किरण नयी संग जग गया,
भोर नयी थी रात ढले, फिर भी पुराना है सब यहाँ,
एक दिन के अंतराल पर कहते हैं क्यों फिर,
हो सबको मुबारक ये साल नया॥