Monday, May 11, 2015

मेरी माँ

कोख में छिपी अजन्मी एक ममता भरी माँ की बेटी मैं थी,

उसके गर्भ मैं इस तरह सुकून और सुरक्षति मैं थी,

जन्मते ही आँगन में मेरी किलकारियों की गूँज से चहक उठी माँ थी ,

अपने सपनों को मुझमें साकार करने के चाह मेरी उस माँ को थी ,

आँचल में अपने छिपा मेरे उदर को भर खुश हो लेती वो मेरी माँ थी ,

मेरी हर मुस्कुराहट पर न्योछावर हुए जाती वो मेरी माँ थी ,

हर रात थपकियों देकर मुझे सुलाती वो मेरी माँ थी ,

खुद को भिगो मुझे सूखी चादर पर सुलाती वो मेरी माँ थी ,

खुद को जगा मुझे रोज नींद भर सुलाती वो मेरी माँ थी ,

आहिस्ते से जब चलना सीखा मैंने ,ऊँगली थाम चलना सिखाती वो माँ थी ,

उम्र के हर मोड़ पर मेरा सहारा बनी वो मेरी माँ थी ,

जरूरत हुई जब मेरे दामन को दुनिया से बचातीवो  मेरी माँ थी ,

मेरे हर स्वप्न को पंख लगाती वो  मेरी माँ थी ,

मेरे क़दमों को सही राह दिखाने वाली वो सबसे प्यारी वो मेरी माँ थी ,

इस धरा पर उस जहाँ की सबसे खूबसूरत वो नज़राना मेरी माँ थी,

जन्मों तक तेरे ही साथ रहूँ माँ बस इतनी सी चाह मेरे दिल में थी ,

शायद मुझसे ज्यादा ऐ मेरी प्यारी माँ, तेरी  उस खुदा  को जरूरत थी ॥

 

No comments:

Post a Comment