Saturday, May 31, 2014
Wednesday, May 28, 2014
unknown
उलटे क़दमों पर चलकर उनके क़दमों के निशाँ ढूंढना चाहती हूँ।
ख्वाहिश दिल में है उनके होंठों से अपना नाम सुनना चाहती हूँ ।।
_______________________________________________________________
दूर तक देखा न आये तुम कहीं नज़र ,
हुई एक आहट पास नज़र आये ॥
________________________________________________________________करती हूँ तेरा इंतज़ार बड़ी बेकरारी से ,
यकीन न हो तो पूछ लो जरा बिस्तर की सलवटों से ॥
________________________________________________________________________-
Saturday, May 24, 2014
मैं
वो कहते हैं उनकी निगाहों मैं एक बार देखो तो जरा,
प्यार के छलकते पैमाने नज़र आयंगे ,
"हेम " के लिए
वो कहते हैं उनके होंठों की थरथराहट को देखो तो जरा ,
प्यार भरे लफ्जों का हँसी मंजर ही नज़र आएगा ,
"हेम" के लिए
वो कहते हैं उनके सीने की धड़कन को महसूस तो कोई करे ,धड़कता दिल ही नज़र आएगा
"हेम" के लिए
सब कुछ तो नज़र आ ही गया उनके जज्बातों में.
प्यार बेइंतिहा नजर आता है
बस "हेम" के लिए।
______________________________________________________________________
Tuesday, May 20, 2014
unknown
आपके क़दमों के निशान मिटने न देंगे हम कभी ,
बस एक बार पड़ ही जाएं आशियाने में मेरे ॥
_____________________________________________________________\
आह भरती एक माँ का दर्द आंसू बन कर आँचल में आकर छिप गया ,
पाला थे जिस एक बेटे को अरमानों संग वो बेटा ही आज बदल गया ,
सोचा कभी उसने नहीं जिस आँचल में महक उसके आँसू की थी
वो ही आँचल उस माँ के आँसुंओं का बसेरा बन गया है ॥
______________________________________________________________________
Monday, May 19, 2014
वक्त
आसमान से उगलते सूरज की तपिश ने,
दरवाजों में बंद कर दिया है लोगों को ।
जाना है जरूरी जिन्हें बाहर वो,
निकल जाते है दिन चढ़ने से पहले ।
गर्मियां तो तब भी आती थीं ,
और तपती थी ये धरती तब भी ।
एक वो भी ज़माना था,
जब घरों में न होते थे पंखे और कूलर ।
न किसी की खिड़की में ए -सी
के डब्बे और कूलर नज़र आते थे ।
खिड़कियों को भी खस के पर्दों से भिगो कर
ठण्ड का अहसास मात्र कर खुश भी उसी में हो जाते थे ।
अक्सर नीम की छाँव में बैठ कर दिन सारा बिता देते
शाम होते घरों के आँगन को ठंडा पानी के छिड़काव से कर लेते ।
याद है मुझे वो दिन भी जब पर्दों को
पानी में भिगो कर खिड़कियों में टांग देते थे ।
और ठण्ड होने का हसीं अहसास यूँ ही कर लेते थे ,
बाजार से लेकर बर्फ के टुकड़े पानी ठंडा कर लेते थे ।
एक ही छत पर मोहल्ले के सारे बैठ गपशप में शाम यूँ ही बिता देते।
कहीं कैरम,कहीं पत्ते खेल शाम को हसीं बना लेते ।
चाय तो दूर सही शरबत भी बमुश्किल पीते थे ,
घड़े के ठन्डे पानी का सोंधापन आज भी याद आता है ।
वक्त बदला छतों में पंखे भी टँगने लगे ,
धीरे-धीरे खिड़कियों में कूलर भी नज़र आने लगे ।
ठन्डे पानी के लिए फ्रिज फिर डबल-डोर फ्रिज,
और अब तो बड़े से बड़े फ्रिज लेन की होड़ लगने लगी है ।
घरों की खिड़कियों में जिनके नहीं ए -सी का डब्बा दिखाई देता,
बड़ी ही हेय नज़रें उनकी खिड़कियों की ओर जाती हैं ।
मगर पूछो कोई उनसे क्या अब वो प्यार नज़र आता है ,
जो छतों पर एक साथ सोने और खेलने में आता था ।
बच्चे भी अब बचपन में ही बड़े होने लग गए है ,
यारों काश ऐसा हो जाये वो दुनिया फिर एक बार लौट आये ।
वक्त ऐसा अब बदल गया है यारों ,
कि अपने ही अपनों से बनाने लगे है दूरी ॥
Sunday, May 18, 2014
जिंदगी
एक पिता के आँगन में जन्मी मैं
अपने अतीत से कतराती हूँ क्यों मैं
न जाने बीते समय को याद करना नहीं चाहती हूँ मैं
जो बीता वक्त था न आये किसी के सामने
जन्म लेते ही खो दिया माँ को मैंने
किसी और के दामन में छिप कर बिताया था बचपन मैंने
फिर बढ़ती उम्र के साथ सारे रिश्तों की समझ आने लगी जब
अपने और परायों का फर्क जानने लग गयी थी मैं
हर आँख में तरस नजर आता था अपने खातिर
किसी की आँखों का तारा नहीं थी मैं,
एक रोज उस पिता का साया भी उठ गया
जिसके आँगन की कली थी मैं
आँसुंओं के बीच अपने होने का अहसास हो ही जाता था
ऐसा लगता था की ज़माने में मुझ सा बदनसीब नहीं था कोई
दूसरों के आसरे बढ़ती हुई यौवन की दहलीज पर रखा था जब कदम
सोचती थी क्या ज़माने में सभी को इस तरह दर्द का सामना करना होता है
न जाने कब एक किरण रौशनी की मेरे जीवन में भी खिल गयी
एक राजकुमार मेरे जीवन की बगिया को यूँ महका गया
की बस सारे गमों को भुलाकर मेरी सूनी जिंदगी को बहार बना दिया
अब न कोई शिकवा इस जिंदगी से है ,न किसी अपने से है
उस आसमान के बन्दे से बस इतनी सी इल्तज़ा है
मुझ जैसा हर किसी को जिंदगी का तोहफा मिले ॥
Saturday, May 17, 2014
परिणाम
लो खिल गया कमल और अच्छे दिन आ गए,
हांथों ने हाथ का साथ छोड़ दिया है।
आप की शमा तो ऐसी बुझी कि निशाँ
क़दमों के भी नज़र नही आ रहे हैं।
अब देखना बस इतना है कि कमल कितने,
रंगों में खिल कर शमा बिखेरता है ,
इंतज़ार अब बाद उन अच्छे दिनों का है ,
रामराज्य तो नहीं पर सुन्दर राज्य तो बन ही जायेगा ।
_________________________________________________________________
Thursday, May 1, 2014
जिंदगी
सर्द हवाओं क लुत्फ़ अभी खतम ही न हुआ था ,
गर्म थपेड़ों ने चेहरे झुलसाने शुरु कर दिये हैं,
नहाने से थोड़ी देर की राहत तो मिलती है ,
पर नहाने के लिये पानी तो मिलना चाहिए ,
घरों में कूलर अभी लगनी भी न पाएं थे ,
कि कूलर मैं डेंगू का लार्वा ढ़ूँढ़ने लोग आने लगे हैं ,
ठंडा पानी गले को थोड़ी सी राहत दे देता है,
पर पानी ठंडा करने को बिजली भी तो होनी चाहिए ,
अगर सोचो कि अपनों के संग कहीं पर्वतों पर,
ठंडी हवाओं का लुत्फ़ लेने को चले जायेँ ,
तो जाने के लिये ट्रेन के टिकट निकालने के लिये,
पैसे भी चाहिएं,रिजर्वेशन भी मिलना चाहिए ,
गर मिल भी जाये टिकट तो रहने को जगह,
होटल में कमरा भी तो मिलना चाहिए ,
सब कुछ छोड़ो यारों ,घड़े ले आओ,
ठंडा पानी पीकर हरि के गुन गाओ ,
मस्त होकर गर्मी का लुत्फ़ उठाओ यारों,
जब न होते थे कूलर ,फ़्रिज़, और ए सी,
तो क्या गर्मी नही होती थी या हम इन्सान नही होते थे,
,,,,,,,,,,जिंदगी जैसी है ,जियो यारोँ वैसे ही ,
जो मजा असली में है वो नकली में है कहाँ -----------------------------------------------
Subscribe to:
Posts (Atom)