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कुछ थी उम्र कच्ची, कुछ नादानियाँ, 💕
तुमको देखा तो धडकनें🫀 हो गयी थी जवाँ ,
देखते ही दिल दे बैठे थे, मन भी बस में नहीं था,
जाने ये प्रेम था, या अल्हड़ 👩🦰जवानी का भ्रम था,
उस रोज से कई पन्नों 🗒️पर कुरेदे थे अल्फाज़ों के मोती,
अन्जान थी मैं तुम्हारे दिल 🫀के जज्बातों से,
हर रोज लिखती ✍️रही थी अपने दिल🫀 के हालात उन खतो 🗒️में,
इक गुलाब 🌹 का फूल भी हर खत में रख देती थी,
पता न पता था, 😔न खबर कोई तुम्हारी थी,
दिल 🫀का चैन छीन, जाने कहाँ तुम खो गए थे,
संजोये थे बडे सिद्दत💕 से मैंने उन खतों को,
इत्र की खुशबुओं से भी तरबतर उन खतो 💌को किया था,
पिरोये हैं अपना हाल-ए-दिल उन सुनहरे पन्नों पर ,
आज भी बेचैन हूँ क्योंकि न भेज सकी मैं उन खतो🗒️ को।
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