तचती,तपती धरती पर कैसे सूरज आज उगल रहा था,
बादलों से धरती का यह दुःख न देखा गया था,
इंसान पसीने में तरबतर देखता ऊपर बादलों की ओर है ,
सोचता है काश कहीं से कुछ बादल ही आ जाएं सर पर,
थोड़ी तो राहत मिल जाये इस घमस भरी धूप से ,
बादलों को तो जैसे बस इसी का इंतज़ार था ,
आज अचानक जाने कहाँ से काले बादलों ने धुंध की काली चादर।
अपने ऊपर ओढ़कर ,कैसा तूफ़ान मचाया था।
कहीं दीवार का गिरना और कहीं पेडों का जमीदोज होना।
कहीं घरों की छतों का सामान उड़कर दूसरों की छतों पर जा टँगना।
जो खड़े थे सालों से जमकर खम्भे भी आज अचानक धड़ाम हुए,
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