Sunday, May 18, 2014

जिंदगी

एक पिता के आँगन में जन्मी मैं
अपने अतीत से कतराती हूँ क्यों मैं
न जाने बीते समय को याद करना नहीं चाहती हूँ मैं
जो बीता वक्त था न आये किसी के सामने
जन्म लेते ही खो दिया माँ को मैंने
किसी और के दामन में छिप कर बिताया था बचपन मैंने
फिर बढ़ती उम्र के साथ सारे रिश्तों की समझ आने लगी जब
अपने और परायों का फर्क जानने लग गयी थी मैं
हर आँख में तरस नजर आता था अपने खातिर
किसी की आँखों का तारा नहीं थी मैं,
एक रोज उस पिता का साया भी उठ गया
जिसके आँगन की कली थी मैं
आँसुंओं के बीच अपने होने का अहसास हो ही जाता था
ऐसा लगता था की ज़माने में मुझ सा बदनसीब नहीं था कोई
दूसरों के आसरे बढ़ती हुई यौवन की दहलीज पर रखा था जब कदम
सोचती थी क्या ज़माने में सभी को इस तरह दर्द का सामना करना होता है
न जाने कब एक किरण रौशनी की मेरे जीवन में भी खिल गयी
एक राजकुमार मेरे जीवन की बगिया को यूँ महका गया
की बस सारे गमों को भुलाकर मेरी सूनी जिंदगी को बहार बना दिया
अब न कोई शिकवा इस जिंदगी से है ,न किसी अपने से है
उस आसमान के बन्दे से बस इतनी सी इल्तज़ा है
मुझ जैसा हर किसी को जिंदगी का तोहफा मिले ॥ 

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