Thursday, June 17, 2021

पर्यावरण

 एक नजर पर्यावरण पर

मैं चीखता रह गया तुम अपंग बनाते रहे, 

मै सिसकता रहा तुम मुझे पूरा ही नष्ट करते रहे, 

आसमान को नील गगन कहने वाले तुम उसे बदरंग बनाते रहे, 

पहाड़ों पर बसने की चाह में पहाडों को मिटाते रहे, 

कुछ तो रहने दो खुद की पीढी के वास्ते,

खुद के सुख की चाह में क्यों मुझको (प्रकृति) मिटाते जा रहे।


हेम लता 




No comments:

Post a Comment