Saturday, August 16, 2014
मिटते निशां
सत्य है,अटल है और अमिट यह सत्य इस धरा का है,
सुना था मैंने ऐसा वो बेसहारा अब दूसरों के टुकड़ों पर पल रहा था ,
Tuesday, August 5, 2014
आजादी के मायने
हर शख्स कहता है इस जहाँ से जाने वाले चमकते हैं,
उस जहाँ में सितारे बनकर ,
जो शहीद हुए हैं हिन्दोस्तान के वास्ते ,
क्या वो भी चमकते होंगे तारे बनकर ,
गर ऐसा है तो उनकी आँखों से बरसते होंगे ,
आसूं इस धरा पर शबनम की बूँद बनकर ,
देख कर दुर्दसा इस आजाद देश की
मुश्किलों का सामना कर के दिलवा गए जो आज़ादी ,
गुमनामियों में खो कर नाम हमको दिखा गए हसीं सपने ,
है कोई आज ऐसा जो बन सके सुभाष चन्द्र ,
है किसी में दम इतना जो बन सके बापू महात्मा
यहाँ तो हर किसी को पड़ी है अपनी -अपनी
कैसी आजादी और कैसी गुलामी ,
हर शख्श करने में लगा है जेब अपनी भारी ,
न याद करते हैं नेता उनकी कुर्बानियों को ,
एक -दुसरे पर छींटा -कसी करने से फुर्सत कहाँ किसी को ,
एक दिन के लिए बस याद कर लिया करते हैं उनको ,
बहाया जिन सैंकड़ों ने इस धरा पर लहू था ,
दिन आता है जब स्वतंत्रता दिवस का ,
याद आ ही जाती है उन बेशुमार शहीदों की ,
चमचामते कपड़ों में झंडा लहराना तो याद रहता है
पर क्या याद एक भी शहीद के नाम उनको होंगे ,
तिरंगा फहराने की परम्परा को यूँ ही साल दर साल ,निभाए जा रहे हैं ,
कैसी है ये आजादी ,जिस देश में हर नौजवान ,
नशे की बेड़ियों में यूँ जकड़ता जा रहा है ,
कैसी है ये आजादी, जो आज भी पश्चिमी सभ्यता में जकड़ा हुआ है ,
अब तो आजादी के असली मायने समझने होंगे ,
एक बार उनकी कुर्बानियों फिर से याद दिलाना होगा ,
इस देश के हर नौजवान को जागना ही होगा ,
नशे से दूर रहकर कुछ कर गुजरना होगा ,
तड़पती धरा की सिसकियों को फिर महसूस करना होगा ,
अन्यथा नहीं है दूर वो बदनसीब दिन।,
ये देश एक बार फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा होगा ॥
Monday, August 4, 2014
bharosa
वक़्त जो बुरा आया है टल जायेगा ,
रात अँधेरी हो कितनी ही फिर सवेरा आएगा ,
गम की घटाएं गर आयीं है फ़िक्र न करना ऎ दोस्त,
ये वक़्त भी गुजर जायेगा
आस्मां मैं बैठे फरिस्ते पर हर वक़्त रखना भरोसा ,
गर अँधेरा दिया है उसने तो उजेला भी वो ही देगा ॥
हर रोज सभी के जीवन में मुश्किलें तो आती हैं ,
गर हो भरोसा अपने पर न कोई कदम डिगा पायेगा ॥
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