Tuesday, August 5, 2014

आजादी के मायने

हर शख्स कहता है इस जहाँ से जाने वाले चमकते हैं,


 उस जहाँ में सितारे बनकर ,


जो शहीद हुए हैं हिन्दोस्तान के वास्ते ,

क्या वो भी चमकते होंगे  तारे बनकर ,


गर ऐसा है तो उनकी आँखों से बरसते होंगे ,


आसूं इस धरा पर शबनम की बूँद बनकर ,


देख कर दुर्दसा इस आजाद देश की 


मुश्किलों का सामना कर के दिलवा गए जो आज़ादी ,

गुमनामियों में खो कर नाम हमको दिखा गए हसीं सपने ,


है कोई आज ऐसा जो बन सके सुभाष चन्द्र ,


है किसी में दम इतना जो बन सके बापू महात्मा


यहाँ तो हर किसी को पड़ी है अपनी -अपनी


कैसी आजादी और  कैसी गुलामी ,


हर शख्श करने में लगा है जेब अपनी भारी ,


न याद करते हैं नेता उनकी कुर्बानियों को ,


एक -दुसरे पर छींटा -कसी करने से फुर्सत कहाँ किसी को ,


एक दिन के लिए बस याद कर लिया करते हैं उनको ,


बहाया जिन सैंकड़ों ने इस धरा पर लहू था ,


दिन आता है जब स्वतंत्रता दिवस  का ,


याद आ ही जाती है उन बेशुमार शहीदों की ,


चमचामते कपड़ों में झंडा लहराना तो याद  रहता है


पर क्या याद एक भी शहीद के नाम उनको होंगे ,


तिरंगा फहराने की परम्परा को यूँ ही साल दर साल ,निभाए जा रहे हैं ,


कैसी है ये आजादी ,जिस देश में हर नौजवान ,


नशे की बेड़ियों में यूँ जकड़ता जा रहा है ,


कैसी है ये आजादी, जो आज भी पश्चिमी सभ्यता में जकड़ा हुआ है ,


अब तो आजादी के असली मायने समझने होंगे ,


एक बार उनकी कुर्बानियों फिर से याद दिलाना होगा ,


इस देश के हर नौजवान को जागना ही होगा ,


नशे से दूर रहकर कुछ कर गुजरना होगा ,


तड़पती धरा की सिसकियों को फिर महसूस करना होगा ,


अन्यथा नहीं है दूर वो बदनसीब दिन।,


ये देश एक बार फिर से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा होगा ॥ 


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