Tuesday, July 15, 2014

पिता का प्यार

 एक पिता पुत्र के प्रेम की अजब दास्ताँ है,
ऊँगली पकड़ चलना सिखाता जिसे पिता है ,
बचपन में जो पुत्र  आँखों का तारा होता है ,
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही 
पिता के दिल से उतरने लगता वो पुत्र है 
कल तक जो अपना था वो अचानक पराया हुआ जाता है ,
हर पल तिरस्कृत पिता से हुआ जाता है 
कभी आदतों के तो  कभी चाहतों के पैमाने पर खरा नहीं उतरता वो पुत्र ,
कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा  जाता है पुत्र 
पिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र 
 अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
 माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस 
सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की 
पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है ,
सर पर प्यार का अब पिता  हाथ फिराता है ,
लोगों से अब कहते नहीं थकता कि पुत्र मेरा है ,
रोशन कर दिया मेरे कुल को आज जिसने ,
क्या हर घर की ऐसी ही दास्ताँ होती है ,क्या पुत्र की ये ही कहानी होती है ,
कैसी विडंबना इस धरा पर है ,पिता पुत्र के प्रेम की ये अजब दास्ताँ है 


4 comments:

  1. कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा जाता है पुत्र
    पिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र
    अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
    माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
    हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस
    सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
    अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की
    पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है
    एकदम बढ़िया

    ReplyDelete
  2. पिता-पुत्र के रिश्ते को बयाँ करती सुन्दर रचना। बहुत खूब।

    ReplyDelete