नारी दिवस
मनाते हैं महिला दिवस ? कैसा है ये परिहास है ,
जहाँ स्त्री आज भी बस है सामान की तरह ,
रोज एक खबर तो बलात्कार की मिल ही जाती है ,
फिर भी मानते हैं महिला दिवस सर उठाकर ।
जहाँ विज्ञापनों में दिखाते बदन महिलाओं के,
और बेचते हैं सामान पुरुषों के इस्तेमाल के लिए ,
है कैसी विडंबना! स्त्री के आंचल में मुंह छिपा,
जो पुरुष सीखता, अपने पैरों पर चलना है ।
उसी के आंचल को बेदाग़ करके भी नहीं थकता,
हर चाौराहे पे आँखों से उसके आंचल को चीरता ।
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