दिल से निकले हर लफ्ज़ को शब्दों में पिरो कर ,
पन्नों पर बिखरा देने को बेचैन रहती हूँ।,
ऐसे ही खाव्बों में किसी रोज कोई आकर ,
मेरे अल्फाजों को कुछ तो सिला दे ये सोचती हूँ ॥
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वक्त के साथ सब ठीक हो ही जायेगा इसी सोच में जिए जाते हैं ,
कभी तो आएगा कोई हमें भी समझने ये हम सोचते हैं ।
आँखें राहों में पलके बिछाएं नज़र वो ढूंढती हैं।
कोई तो हमसफ़र बनने के लिए आएगा ये हम सोचते हैं ॥
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