Tuesday, February 4, 2014

शिकवा

१. आई है क्यों बूँद पसीने  की तेरे पेशाने पे,क्या गम है जो छिपाये हो दिल के अंधेरों में ।
क्यों नहीं इजहारे गम कर देते हो सनम,हम आपके ही तो हैं सनम नही कोई बेगाने ॥ 

२.फैसले जिंदगी के जो आप खुद ही कर लेते ,यूँ ज़माने भर में आज  न हमको रुसवा करते ।
तड़पकर रह जाते हैं आपके बेरुखे अंदाज से,अश्क हैं कि आँखों से थमने का नाम ही नहीं लेते ॥ 

३. कैसे भूल जाऊँ मैं उन लम्हात को जब कुरेदा था तुमने मेरे जज्बात को।
तुम्हें तो जख्म देने की आदत सी है,हमें हैं जो सी भी नहीं पाते इन जख्मों को ॥ 

४. उजाले हमें क्यूँ रास नहीं आते ,
                                         अंधेरों में हम हैं  यूँ ही मुस्कुराते ।
होती हूँ जब आईने के सामने ,
                                         हो जाते हैं उदास दिल के कोने ।
नहीं शिकवा कोई गिला भी उनसे ,
                                        बस शिकायत है अपनी किस्मत से ॥ 

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