उनके लिए कुछ तो सोचा होता ऐ मालिक ,
बाहर ठण्ड कड़कड़ाती में जो बेबस सोते है|
कोई उनका भाग्य कह किनारा कर लेता है ,
कोई देख कर अनदेखा कर देता है ,कोई तो तस्वीर लेने आ धमकता है|
और कोई उनके तन पर कम्बल डाल जाता है ,
कोई रजाई में दुबक जाता है बंद कमरों में,
दो घडी के लिए कोई अलाव जलाकर बच जाता है|
कोई तो आस्मां ऐसा भी होता जो ,
उनके तन पर गरम हवाएं बहा जाता इस कड़कड़ाती ठण्ड में।
कहीं एक आशियाना उनके लिए होता ,
तो आज न आँख में आंसू हमारे होते ऐ मालिक .
सरेआम उनकी जिंदगी पर कहानी लिखने वालों ,
कभी उनके आंसुओं का हिसाब भी लिख लेना॥
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