बहुत याद आते हैं गुजारे हुए बचपन के दिन,
गली के दोस्तों संग खेलते बचपन के दिन ,
गर्मियों की छुटियाँ और नाना-नानी के घर ,
आम खाते हुए बिताये वो बचपन के दिन ।
न थी दिल मे कोई चाहत न हसरत ,
न था कोई गुमान, खाते-खेलते बिताये बचपन के दिन ,
गिल्ली-डंडे-गिट्टक संग खेलते,डांट खाते -
खिलखिलाते हुए बिताये हुए वो बचपन के दिन ।
हर गली लगती एक मोहल्ले सी,
घूमते -टहलते हर किसी को अपना चाचा बुलाते हुए वो दिन,
मोहल्ले बँट गए कालोनियों में ,पार्कों में मम्मी -दादी
-नानी संग बिताता हर कोई अपना बचपन ।
नज़र अब नहीं कोई आता झूलों पर पेंगे मारता हुआ बचपन ,
बारिशों में भीगता नाव डुबाता, बचपन,
दब गया है किताबों के बोझ तले हर किसी का बचपन,
आगे बढ़ने की होड़ में खोता हुआ बचपन ।
हम खुद अपने बच्चों को बना रहे है बेगाने ,
रिश्तों से दूर हो रहा है आज हर किसी का बचपन ,
नज़र अब आता है ,बंद कमरों में टी वी ,कम्प्यूटर ,
मोबाईल बीच बिताता हुआ हर किसी का बचपन ॥
गली के दोस्तों संग खेलते बचपन के दिन ,
गर्मियों की छुटियाँ और नाना-नानी के घर ,
आम खाते हुए बिताये वो बचपन के दिन ।
न थी दिल मे कोई चाहत न हसरत ,
न था कोई गुमान, खाते-खेलते बिताये बचपन के दिन ,
गिल्ली-डंडे-गिट्टक संग खेलते,डांट खाते -
खिलखिलाते हुए बिताये हुए वो बचपन के दिन ।
हर गली लगती एक मोहल्ले सी,
घूमते -टहलते हर किसी को अपना चाचा बुलाते हुए वो दिन,
मोहल्ले बँट गए कालोनियों में ,पार्कों में मम्मी -दादी
-नानी संग बिताता हर कोई अपना बचपन ।
नज़र अब नहीं कोई आता झूलों पर पेंगे मारता हुआ बचपन ,
बारिशों में भीगता नाव डुबाता, बचपन,
दब गया है किताबों के बोझ तले हर किसी का बचपन,
आगे बढ़ने की होड़ में खोता हुआ बचपन ।
हम खुद अपने बच्चों को बना रहे है बेगाने ,
रिश्तों से दूर हो रहा है आज हर किसी का बचपन ,
नज़र अब आता है ,बंद कमरों में टी वी ,कम्प्यूटर ,
मोबाईल बीच बिताता हुआ हर किसी का बचपन ॥
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