कर्ज इतना है तेरे अहसानों का,
जन्म हज़ार लें फिर भी न चुका पाऊँगी,
मेरे हर सपने के आगे खड़ी थीं तुम इस तरह,
अँधियों से लड़ना सिखाया तुमने,
ज़माने में चलना सिखाया तुमने,
अंधेरों से लड़ना सिखाया तुमने,
हर घडी मेरे साथ खड़े होकर,
अपनों से लड़ना सिखाया तुमने,
अपनी ख़्वाहिशों को ताले में रखकर,
मेरे अरमानों को पूरा किया तुमने,
मेरी खातिर अकेले में आँसू भी बहाया तुमने,
अब तो इल्तज़ा इतनी सी उस खुदा से है,
गर जनम हो दुबारा मेरा,
तेरे ही लहू का क़तरा बन जनम लूँ मैं,
उतार सकूँ कुछ तो कर्ज मैं तेरा,
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