विदा हो गया आज इस धरा से आज वो,
अपनी माँ की आँखों का तारा था जो,
नरम हांथों में पला था माँ ने न रहा आज वो,
सपना सा लगा सुना जब मैंने विश्वास ही न हुआ,
अपने हाथों से निवाले कभी मैंने भी खिलाये थे जिसको ,
खनखनाहट सी हंसी संग इधर- उधर डोलता था वो ,
न जाने कब और क्यों भटक राहों में गया था वो,
कुसंगतों में फंस जीवन की दिशा को मोड़ लिया था यूँ,
न संग कोई अपना रहा न गैरों ने साथ निभाना चाहा,
चूर-चूर कर दिए थे सपने देखे थे माँ ने खातिर जो,
आहिस्ता -आहिस्ता कदम अब लड़खड़ाने लगे थे यूँ ,
कुछ दिनों पहले उसके अस्थि पंजर मात्र तन को देख सिहर उठा था मन मेरा,
यही जीवन की है व्यथा जाना हर किसी को पड़ता है आया है धरा पर जो,
उदास हो गया है मन मेरा भी किसी के आँगन का उजाला मिटा है जो ,
वो एक सुबह आई ऐसी छोड़ बेसहारा अपनों को दूर गगन में गया था वो ॥
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