एक पिता पुत्र के प्रेम की अजब दास्ताँ है,
ऊँगली पकड़ चलना सिखाता जिसे पिता है ,
बचपन में जो पुत्र आँखों का तारा होता है ,
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही
पिता के दिल से उतरने लगता वो पुत्र है
कल तक जो अपना था वो अचानक पराया हुआ जाता है ,
हर पल तिरस्कृत पिता से हुआ जाता है
कभी आदतों के तो कभी चाहतों के पैमाने पर खरा नहीं उतरता वो पुत्र ,
कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा जाता है पुत्र
पिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र
अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस
सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की
पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है ,
सर पर प्यार का अब पिता हाथ फिराता है ,
लोगों से अब कहते नहीं थकता कि पुत्र मेरा है ,
रोशन कर दिया मेरे कुल को आज जिसने ,
क्या हर घर की ऐसी ही दास्ताँ होती है ,क्या पुत्र की ये ही कहानी होती है ,
क्या हर घर की ऐसी ही दास्ताँ होती है ,क्या पुत्र की ये ही कहानी होती है ,
कैसी विडंबना इस धरा पर है ,पिता पुत्र के प्रेम की ये अजब दास्ताँ है
कभी क़दमों के बहकने के तानों से घिरा जाता है पुत्र
ReplyDeleteपिता की नज़रों से दूर जाता हुआ वो पुत्र
अपनी ही आँखों में गिरा जाता है वो पुत्र ,
माँ की आँखों का तारा सदा ही होता है पुत्र ,
हर तूफ़ान से बचा लाने का साहस
सिर्फ और सिर्फ माँ में ही होता है ,
अचानक जब पार लगती है नैया पुत्र की
पिता का प्यार एक बार फिर उमड़ आता है
एकदम बढ़िया
thanks
Deleteपिता-पुत्र के रिश्ते को बयाँ करती सुन्दर रचना। बहुत खूब।
ReplyDeletethanks rajesh
Delete